बौद्धिक रूप से अक्षम व्यक्ति नहीं कर सकते अंगदान
भारत जैसे देश में जहां हजारों मरीज किडनी या लीवर की खराबी के कारण हर वर्ष जान गंवा बैठते हैं वहां अंगदान को लोकप्रिय बनाने के लिए हर संभव प्रयास होना चाहिए मगर ऐसा नहीं हो पा रहा है। अंगदान से जुड़ी एक महत्वपूर्ण बात जो लोगों को जाननी चाहिए वह ये है कि मानसिक रूप से अक्षम व्यक्ति देश में किसी भी स्थिति में अंगदान नहीं कर सकते। ऐसे लोगों के अंगदान पर कानून ने स्पष्ट रूप से रोक लगा रखी है।
कोर्ट ने नहीं दी इजाजत
हाल में बॉम्बे हाईकोर्ट ने ऐसे ही एक व्यक्ति की अंगदान करने देने की मांग करने वाली याचिका खारिज कर दी। माननीय हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि अंगदान कानून का सेक्शन 2 (एफ) साफ कहता है कि अंग दान करने वाला कम से कम 18 साल का होना चाहिए जो अपने शरीर का कोई अंग या टिश्यू दान करने के बारे में खुद मंजूरी दे सके। इसी कानून का सेक्शन 9 (1सी) कहता है कि मानसिक विकलांग व्यक्ति के शरीर से कोई अंग या टिश्यू नहीं निकाला जा सकता।
केरल सरकार ने बनाया नियम
दूसरी ओर केरल सरकार ने जेल में बंद कैदियों को अपने निकट परिवारी जन को अंगदान करने की इजाजत दे दी है। हालांकि इस अंगदान के लिए कैदियों को पहले मेडिकल बोर्ड और उस अदालत की मंजूरी लेनी होगी जिसने उसे सजा सुनाई है। केरल सरकार ने यह कदम कन्नूर जेल में बंद एक कैदी की अपील पर विचार करने के बाद उठाया है जिसने अपने निकट परिजनों को अंगदान करने की मंजूरी सरकार से मांगी थी।
अंगदान के बारे में जागरूकता जरूरी
इस बारे में हार्ट केयर फाउंडेशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष पद्मश्री डॉक्टर के.के. अग्रवाल ने कहा कि अंगदान के लिए दी जाने वाली स्व स्वीकृति के पांच पहलू हैं। पहला सक्षमता, जिसका कानूनी अर्थ है कि अंगदान करने वाले व्यक्ति में सही फैसला लेने की क्षमता होनी चाहिए, दूसरा सूचना की मात्रा और सटीकता का ज्ञान, मरीज की समझ, खुद से फैसला लेना और अधिकृत करना। मानसिक रूप से अक्षम व्यक्ति में यह पांचों ही पहलू गायब होते हैं इसलिए उनके द्वारा अंगदान पर रोक लगाई गई है। दूसरी ओर केरल वाले मामले में जिसमें पूर्ण सक्षम मंजूरी मौजूद है वहां भी परिवार से बाहर के लोगों के साथ अंग मैच करने में आने वाली दुश्वारियों के कारण सिर्फ परिवार के लोगों के लिए अंगदान की ही मंजूरी दी गई है।
अंगदान बड़ी समस्या
गौरतबल है कि देश में अंगदान एक बड़ी समस्या है। हालांकि ऑर्गन ट्रांसप्लां एक्ट को साल 2014 में संशोधित किया गया है जिसके तहत अब डॉक्टरों के लिए यह अनिवार्य है कि वे अस्पताल में सभी से अंगदान करने के बारे में जरूर पूछें। इसका अर्थ है कि यदि कोई व्यक्ति ब्रेन डेड घोषित हो जाए तो ड्यूटी पर तैनात डॉक्टर उसके परिजनों से अंगदान करने के लिए जरूर से पूछेंगे। उदाहरण के लिए यदि कोई व्यक्ति मृत घोषित हो जाए तो उसके परिजनों को आंखों की कॉर्निया के दान के लिए जबकि कोई ब्रेन डेड घोषित हो जाए तो शरीर के सभी अंगों के दान के लिए मनाया जाए। वैसे डॉक्टर अग्रवाल कहते हैं कि अंगदान के लिए अब उम्र कोई सीमा नहीं है। 80 साल की उम्र में भी लोग अंगदान कर सकते हैं।
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